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Thursday, 29 April 2021

                                                                                   श्रद्धांजलि




भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय वित्त सचिव आदरणीय श्री जगदीश जोशी जी विगत एक सप्ताह से हिंदुराव Hospital में कोरोना से लड़ते हुए ब्रंहलीन हो गए! वे भारतीय मजदूर संघ के पूर्णकालीन कार्यकर्ता थे!  सहज स्वभाव के धनी श्री जोशी जी के अंदर गजब का आकर्षण था जो किसी को भी अपना बना लेता था! केंद्रीय कार्यसमिति में वित्तीय विवरण रखने का उनका अंदाज एवम् उनकी आवाज बिल्कुल अलग रहती थी! वित्त के संबंध में कार्यसमिति के एक एक सदस्य को संतुष्ट करते थे! वे संघ में कड़े वित्तीय अनुशासन के पछधर थे एवमं पुरे जीवन उसका अनुपालन किया! उनके निधन से संघ को अपूर्णनीय छति हुई है! 

ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें एवम दुखी परिवार को इस बड़ी तकलीफ को बर्दास्त करने की शक्ति प्रदान करें,हम ऐसी प्रार्थना करते हैं!हम मृत्यु पर नियंत्रण करने वाले तथा   दुनिया की रक्छा करने के लिए हलाहल पीने वाले प्रभु महाकालेश्वर भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है कि प्रभु बहुत हो गया, अब अपने बच्चों को बचावो प्रभु! दुनिया की रछा करो नीलकंठ भगवान! 

श्री जगदीश जोशी जी - अमर रहें! 

शोकाकुल बी पी ई एफ परिवार

 

Letter to Hon'ble Minister for Communicaton  Request for adopting the following welfare measures to guard against second wave of CORONA on top priority basis 



Letter to DG Request for adopting the following welfare measures to guard against second wave of CORONA on top priority basis 

 

Monday, 26 April 2021

                              श्रद्धांजलि


                                                                   

गुजरात परिमंडल में रेल डाक सेवा संघ के भीष्म पितामह, रास्ट्रवादी  विचारधारा  के विख्यात पुरोधा, अत्यंत जुझारू एवम्ं कर्मठ कार्यकर्ता, पूर्व प्रांतीय  सचिव श्री जे.के.परमार जी आज ब्रंहलीन हो गए! 

श्री परमार जी से हमारा बहुत ही घनिष्ठ रिश्ता रहा! एक दूसरे के घर शादी विवाह में आना जाना से लेकर हमारे/संगठन के हर संकट के समय वे पास मिलते थे! कोई भी न्यूज वेबसाइट पर डालने के अगले पल वे उसे पूरे देश में सरकुलेट कर देते थे! रिटायर होने के बाद भी वे संगठन में पहले से ज्यादा सक्रिय थे! गुजरात में एस सी - एस टी संगठन की आत्मा भी वही थे! बिगत दिनों जब अहमदाबाद में इस SC-ST संघ का अखिल भारतीय अधिवेशन संपन्न हो रहा था तो आदरनीय परमार जी ने हमारी और अपनी फोटो लगाकर एवम्ं नाम लिखकर सभी प्रतिनिधियों का अभिनंदन किया था! उनके निधन से इस संघ को गहरा आघात लगा है! इस संघ ने अपना एक जागरूक कमांडर तथा हम सभी ने अपना सच्चा guardian  खो दिया है! 

ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें एवम दुखी परिवार को इस बड़ी तकलीफ को बर्दास्त करने की शक्ति प्रदान करें,हम ऐसी प्रार्थना करते हैं!

श्री परमार जी - अमर रहें! 

                                                    शोकाकुल बी पी ई एफ परिवार

 


Date of deposition of membership form for change of Union has been extended upto 30.6.2021





Wednesday, 21 April 2021

                                                                                     श्रद्धांजलि




एक युग का अंत! मानवता का सच्चा पुजारी ब्रंहलीन! 

भारतीय मजदूर संघ की अपूर्णनीय  क्षति ! 

बाल्य जीवन से लगाकर, अंत तक की दिव्य झांकी!! 

मूक आजीवन तपस्या, जा सके किस भाँति आँकी!! 

ब्रंहलीन परम पूज्यनीय श्री पांडे जी के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम एवम्ं  भावभीनी श्रद्धांजलि! 

ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें, हम ऐसी प्रार्थना करते हैं!

 भारतीय डाक कर्मचारी  महासंघ  परिवार की ओर से सभी को राम नवमी  की हार्दिक  शुभकामनाये  





BPEF Letters to Secretary (Posts) & Director General Department of Posts 





 

Tuesday, 20 April 2021

 All office bearers are requested to build this hording & tag before your office.





Wednesday, 14 April 2021


14 अप्रैल/जन्म-दिवस -संविधान के निर्माता डा. अम्बेडकर 

        भारतीय संविधान के निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू (म.प्र.) में हुआ था। उनके पिता श्री रामजी सकपाल तथा माता भीमाबाई धर्मप्रेमी दम्पति थे। उनका जन्म महार जाति में हुआ था, जो उस समय अस्पृश्य मानी जाती थी। इस कारण भीमराव को कदम-कदम पर असमानता और अपमान सहना पड़ा। इससे उनके मन का संकल्प क्रमशः दृढ़ होता गया कि उन्हें इस बीमारी को भारत से दूर करना है।

        विद्यालय मे उन्हें सबसे अलग बैठना पड़ता था। प्यास लगने पर अलग रखे घड़े से पानी पीना पड़ता था। एक बार वे बैलगाड़ी में बैठ गये, तो उन्हें धक्का देकर उतार दिया गया। वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे, पर कोई पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। एक बार वर्षा में वह एक घर की दीवार से लगकर बौछार से स्वयं को बचाने लगे, तो मकान मालकिन ने उन्हें कीचड़ में धकेल दिया। 

        इतने भेदभाव सहकर भी भीमराव ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। गरीबी के कारण उनकी अधिकांश पढ़ाई मिट्टी के तेल की ढिबरी के प्रकाश में हुई। यद्यपि सतारा के उनके अध्यापक श्री अम्बा वाडेकर, श्री पेंडसे तथा मुम्बई के कृष्णाजी केलुस्कर ने उन्हें भरपूर सहयोग भी दिया। जब वे महाराजा बड़ोदरा के सैनिक सचिव के नाते काम करते थे, तो चपरासी उन्हें फाइलें फंेक कर देता था। 

        यह देखकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी तथा मुम्बई में प्राध्यापक हो गये। 1923 में वे लन्दन से बैरिस्टर की उपाधि लेकर भारत वापस आये और वकालत करने लगे। इसी साल वे मुम्बई विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुए; पर छुआछूत की बीमारी ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा।

    1924 में भीमराव ने निर्धन और निर्बलों के उत्थान हेतु ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ बनायी और संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1926 में महाड़ के चावदार तालाब से यह संघर्ष प्रारम्भ हुआ। जिस तालाब से पशु भी पानी पी सकते थे, उससे पानी लेने की अछूत वर्गाें को मनाही थी। डा0 अम्बेडकर ने इसके लिए संघर्ष किया और उन्हें सफलता मिली। उन्होंने अनेक पुस्तकंे लिखीं तथा ‘मूकनायक’ नामक पाक्षिक पत्र भी निकाला।

            इसी प्रकार 1930 में नासिक के कालाराम मन्दिर में प्रवेश को लेकर उन्होंने सत्याग्रह एवं संघर्ष किया। उन्होंने पूछा कि यदि भगवान सबके हैं, तो उनके मन्दिर में कुछ लोगों को प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता ? अछूत वर्गों के अधिकारों के लिए उन्होंने कई बार कांग्रेस तथा ब्रिटिश शासन से संघर्ष किया। 


भारत के स्वतन्त्र होने पर उन्हें केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में विधि-मन्त्री की जिम्मेदारी दी गयी। भारत का नया संविधान बनाने के लिए गठित समिति के वे अध्यक्ष थे। इस नाते उन्हें 'आधुनिक मनु' कहना उचित ही है।

        संविधान में छुआछूत को दंडनीय अपराध बनाने के बाद भी वह समाज में बहुत गहराई से जमी थी। इससे वे बहुत दुखी रहते थे। अन्ततः उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ने का निश्चय किया। यह जानकारी होते ही ईसाई और मुसलमान नेता उनके पास तरह-तरह के प्रलोभन लेकर पहुँच गये; पर भारतभक्त डा. अम्बेडकर जानते थे कि इन विदेशी मजहबों में जाने का अर्थ देश से द्रोह है। अतः विजयादशमी (14 अक्तूबर, 1956) को नागपुर में अपनी पत्नी तथा हजारों अनुयायियों के साथ उन्होंने भारत में जन्मे बौद्ध मत को अंगीकार किया। यह भारत तथा हिन्दू समाज पर उनका बहुत बड़ा उपकार है।

    6 दिसम्बर, 1956 को इस महान देशभक्त का देहान्त हुआ।

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 रास्ट्र नायक बाबा साहेब, अमर रहें, अमर रहें!

Friday, 9 April 2021